मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
भारत त्योहारों की भूमि है और मकर संक्रांति Makar Sankranti उनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसे ‘संक्रांति’ कहा जाता है। यह पर्व हर साल 14 या 15 जनवरी को आता है, जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
मकर संक्रांति को पूरे भारत में विभिन्न नामों से जाना जाता है – उत्तर भारत में मकर संक्रांति, महाराष्ट्र में तिलगुल, गुजरात में उत्तरायन, तमिलनाडु में पोंगल, असम में भोगली बिहू, पंजाब में लोहड़ी। इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं जो इसकी महत्ता को और अधिक बढ़ाती हैं।
1. भगवान सूर्य और शनि देव की कथा
मकर संक्रांति का एक प्रमुख पहलू है भगवान सूर्य का अपने पुत्र शनि के घर मकर राशि में प्रवेश करना। शनि देव मकर राशि के स्वामी माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार, सूर्य देव और शनि देव के बीच संबंध तनावपूर्ण थे। परंतु, मकर संक्रांति का दिन वह समय होता है जब सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं मकर राशि (शनि का घर) आते हैं। इसे पिता-पुत्र के मिलन का पवित्र अवसर माना जाता है।
शिक्षा: पारिवारिक संबंधों में संवाद, क्षमा और प्रेम को महत्व देना चाहिए।
2. भीष्म पितामह की इच्छा मृत्यु
महाभारत में वर्णित है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने शरशैया पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो गया और उसी दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे। इसलिए यह दिन मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
शिक्षा: जीवन और मृत्यु दोनों में समय का चुनाव धर्म और ज्ञान से करना चाहिए।
3. गंगा अवतरण और भागीरथ की तपस्या
एक और प्रसिद्ध कथा राजा भागीरथ और माँ गंगा से जुड़ी है। कहा जाता है कि राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा ने मकर संक्रांति के दिन पृथ्वी पर अवतरण किया। उसी दिन भागीरथ ने गंगा स्नान करके पितरों का तर्पण किया। इसलिए इस दिन गंगा स्नान और तीर्थ यात्रा का विशेष महत्व है।
शिक्षा: दृढ़ संकल्प और भक्ति से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
4. भगवान विष्णु द्वारा असुरों का संहार
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का वध कर उनका अंत किया और उन्हें मंदराचल पर्वत के नीचे दबा दिया। इस प्रकार इस दिन को धर्म की विजय और अधर्म के अंत के रूप में भी मनाया जाता है।
शिक्षा: जीवन में अधर्म चाहे जितना भी प्रबल हो, अंततः धर्म की ही विजय होती है।
5. दान और पुण्य की कथा
मकर संक्रांति से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन जो भी दान (विशेषकर तिल, गुड़, कंबल, अन्न) करता है, उसे सहस्त्रगुणा फल प्राप्त होता है। यह देवताओं के दिन की शुरुआत का प्रतीक है, जब सूर्य उत्तरायण होता है।
इस दिन किया गया तिल और गुड़ का दान पापों का नाश करता है और जीवन में मिठास लाता है।
शिक्षा: परोपकार और दान धर्म जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
6. लोककथाओं में मकर संक्रांति
भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति से जुड़ी स्थानीय लोककथाएं और परंपराएं भी प्रचलित हैं:
- महाराष्ट्र में महिलाएं एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम लगाकर तिल-गुड़ बांटती हैं और कहती हैं, “तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोला।”
- गुजरात में यह दिन पतंगबाजी का पर्व है, जहां लोग मानते हैं कि पतंग उड़ाकर वे देवताओं को प्रसन्न करते हैं।
- पंजाब में लोहड़ी के रूप में यह पर्व अग्नि को अर्पित किया जाता है और नई फसल का स्वागत किया जाता है।
शिक्षा: परंपराएं हमें समाज से जोड़ती हैं और सामूहिक आनंद का माध्यम बनती हैं।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति Makar Sankranti केवल सूर्य के राशि परिवर्तन का पर्व नहीं, बल्कि यह धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है। यह दिन हमें धर्म, दान, संयम, कर्तव्य और आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देता है।
इन कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि यह पर्व न केवल प्रकृति और खगोलीय घटनाओं से जुड़ा है, बल्कि मानव जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक विकास से भी गहराई से संबंधित है।